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December 21, 2024

KAMAKHYA DEVI TEMPLE │कामाख्या देवी मंदिर के दर्शन और यात्रा से जुड़ी सारी जानकारियां

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KAMAKHYA DEVI TEMPLE │कामाख्या देवी मंदिर के दर्शन और यात्रा से जुड़ी सारी जानकारियां
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कामाख्या देवी मंदिर के दर्शन और यात्रा से जुड़ी सारी जानकारियां

कामाख्या देवी का मंदिर अपने आप में बहुत खास है। क्योंकि इस मंदिर में किसी देवी की नहीं बल्कि देवी की योनि की पूजा होती है।

कामाख्या मंदिर कहा स्थित है (KAMAKHYA TEMPLE IS LOCATED IN)

कामाख्या देवी का मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर गुवाहाटी में स्थित है। कामाख्या देवी गुवाहटी की नीलांचल पहाड़ियों में विराजमान है। ” कामाख्या देवी ” का अर्थ है “इच्छाओ को पूरी करना”। ऐसा कहा जाता है की कामाख्या देवी सबकी इच्छाओ को पूरा करती है।

कामाख्या देवी का मंदिर सभी तांत्रिक विधाओं का गढ़ मन जाता है। यहाँ के विद्वान तांत्रिक विधाओं में अति गुनी है।

कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास (KAMAKHYA DEVI STORY)

 पौराणिक कथाओ के अनुसार कामाख्या देवी मंदिर माता सती का मंदिर है। जब माता सती और भगवान् शिव का विवाह हो गया था। माता सती के पिता राजा दक्ष भगवान् शिव से प्रसन्न नहीं थे।

एक बार राजा दक्ष ने अपने महल में यज्ञ का आयोजन किया था और सभी देवताओ को निमंत्रण दिया लेकिन भगवान् शिव को नहीं बुलाया। लेकिन माता सती के निवेदन करने पर शिव भगवान वहा पधारें परन्तु शिव को अपने यज्ञ में देख कर राजा दक्ष भगवान् शिव का तिरस्कार करते है। माता सती इस अपमान को बर्दास्त नहीं कर पाती है और अग्नि कुंड में कूद कर अपने आप को भस्म कर लेती है।

यह देख कर भगवान् शिव बहुत दुखी होते है और माता सती का शव लेकर कैलाश पर्वत पर एकांत वास में चले जाते है। भगवान् शिव के एकांत वास से असुरो का मनोबल बढ़ जाता है और असुर पृथ्वी पर हाहाकार मचा देते है।

भगवान् विष्णु ने पृथ्वी को असुरो से बचाने के लिए अपना चक्र फेका जिससे की माता सती के शव के 51 टुकड़े हो गए जिसे पास रखकर शिव तपस्यालीन थे और यह टुकड़े जहाँ जहाँ गिरे वहा शक्ति पीठ का निर्माण हो गया।

जिस स्थान पर माता का योनि भाग गिरा वहाँ पर आज कामाख्या माता मंदिर विराजमान है।

कामाख्या माता के दर्शन का महत्व (Importance of Kamakhya Temple)

यदि कोई व्यक्ति यहाँ कन्या पूजन करता है या कन्याओ को भोजन करवाता है तो माँ कामाख्या उसकी सभी मनोकामनाओ को पूरा करती है।

यहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए बलि भी दी जाती है। लेकिन यह बलि सिर्फ नर पशुओ की दी जाती है मादा पशुओ की नहीं।

मंदिर के साथ ही एक और मंदिर है जिसमे की माता देवी रूप में विराजित है इसे कामादेव मंदिर कहा जाता है।

यहाँ के तांत्रिक किसी भी तरह के जादू या तंत्र से मुक्ति दिला सकते है।

यहाँ दर्शन मात्र से ही इच्छाएं  पूरी हो जाती हो।

कामाख्या माता मंदिर का प्रसाद (Prasada of Kamakhya Devi Temple)

कामाख्या माता मंदिर में भक्तो को प्रसाद के तौर पर कपड़ा दिया जाता है। इस वस्त्र को अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है।

यह वस्त्र एक विशेष तरह का वस्त्र होता है। धार्मिक मान्यताओं  के अनुसार महीने में तीन दिन माता को रजस्वला होता है जिसके चलते उन के आस पास एक सफ़ेद कपडा बिछा दिया जाता है। साथ ही साथ तीन दिन के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है। जब तीन दिन के मंदिर के गेट खोले जाते है तो वह कपडा लाल रंग का मिलता है। बाद में इसी कपडे को प्रसाद के रूप में भगतो को दिया जाता है।

मंदिर की बनावट (KAMAKHYA TEMPLE INSIDE)

कामाख्या माता का मंदिर मधुमक्खी के छत्ते के समान है। मंदिर के स्तम्भों पर देवी देवताओ के चित्र उभरे हुए है। मंदिर का निर्माण बंगाली इस्लामी वास्तुकला में हुआ है। वर्तमान मंदिर का निर्माण नार नारायण ने करवाया था।

कामाख्या माता मंदिर की विशेषताएँ (GUWAHATI KAMAKHYA TEMPLE GLORY)

यहाँ माता सती की योनि की पूजा होती है जो की हर समय फूलो से ढकी रहती है।

यहाँ लगने वाला अम्बुवाची मेला जिसमे की प्रसाद के तौर पर कपडा मिलता है।

कामाख्या माता मंदिर के निकट बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी 3  दिन के लिए लाल हो जाता है। जून के महीने में जब अम्बुवाची मेला लगता है तो उस समय 3 दिन तक नदी का पानी लाल रहता है। इस के पीछे देवीय शक्ति को माना जाता है।  

कामाख्या माता मंदिर अपनी तांत्रिक विद्या के लिए भी बहुत मशहूर है।

कामाख्या माता मंदिर का अम्बुवाची मेला ( KAMAKHYA TEMPLE GUWAHATI ASSAM AMBUVACHI MELA )

अम्बुवाची मेला जून के महीने में 4 दिनों के लिए लगता है। इन चार दिनों के लिए मंदिर के पट भी बंद कर दिए जाते है। क्योंकि इन दिनों में माता आराम करती है। इस चार दिनों के लिए वहाँ रहने वाले सभी लोग अपने धार्मिक काम भी बंद कर देते है। साथ साथ वहाँ किसी तरह का कोई काम नहीं होता है जैसे  की कृषि , जुताई , बुवाई आदि। विधवाएं , ब्रह्मचारी , और ब्राह्मण इन दिनों में पके हुए भोजन को नहीं खाते है।

ऐसा माना जाता है की इन दिनों में माता को रजस्वला होता है। इसलिए माता भी गृहस्थ महिलाओ की तरह आराम करती है।

कामाख्या माता मंदिर दर्शन का उत्तम समय क्या है (KAMAKHYA TEMPLE DARSHAN TIMINGS )

आप कामाख्या माता मंदिर में दर्शन के लिए सुबह 5 :30 से दोपहर 1 :00  तक जा सकते है।  उस के बाद दोपहर 2 : 30  से शाम 5 :30  तक जा सकते है।

कामाख्या मंदिर जाने का उचित समय (BEST TIME TO KAMAKHYA TEMPLE)

कामाख्या माता दर्शन के लिए साल का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का होता है।  इस समय गुवाहटी का मौसम बहुत अच्छा होता है।

साथ ही साथ अम्बुवाची मेला , दुर्गा पूजा , मनाशा मेला पर कामाख्या मंदिर में एक अलग छटा देखने के लिए मिलती है। 

कैसे पंहुचा जाये कामाख्या माता मंदिर (HOW TO REACH KAMAKHYA DEVI GUWAHATI )

वायु मार्ग द्वारा  (By Airport):

कामाख्या मंदिर से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट गुवाहाटी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यह एयरपोर्ट कामाख्या माता मंदिर से 13 किलो मीटर की दुरी पर है। आप एयरपोर्ट उतर कर वहाँ से मंदिर के लिए टैक्सी या कैब ले सकते है।

रेल मार्ग द्वारा (By Railway):

कामाख्या माता मंदिर के लिए कामाख्या जंक्शन नाम से रेलवे स्टेशन है। इस स्टेशन की कनेक्टिविटी भारत के सभी शहरों से है। आप कामाख्या जंक्शन रेलवे स्टेशन उतर कर वहाँ से रिक्शा या टैक्सी ले सकते है और मंदिर आसानी से पहुंच सकते है।

बस द्वारा (By Bus):

गुवाहटी बस स्टैंड से कामाख्या माता मंदिर करीब  12 किलो मीटर दूर है। आप गुवाहटी बस स्टैंड से कामाख्या मंदिर के लिए बस ले सकते है। इस प्रकार आप बस दवारा आसानी से मंदिर पहुंच सकते है।

कामाख्या माता मंदिर के आस पास घूमने लायक स्थान (PLACES TO VISIT NEAR KAMAKHYA DEVI TEMPLE)

भुवनेश्वरी मंदिर  (Bhubaneswari Temple, Guwahati):

भुवनेश्वरी मंदिर गुवाहाटी के प्राचीन और पवित्र मंदिरो में से एक है। यह मंदिर नीलांचल की पहाड़ियों पर स्थित है। भुवनेश्वरी मंदिर माता कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर ही स्थित है।

पूर्व तिरुपति श्री बालाजी मंदिर (Purva Tirupati Sri Balaji Temple, Guwahati):

पूर्व तिरुपति बालाजी मंदिर असम में गुवाहटी के अहोम गॉव में स्थित है। यह मंदिर बहुत ही सूंदर वास्तु कला में बना है। 2 एकड़ में फैला हुआ यह मंदिर बालाजी भगवान् को समर्पित है।

यह मंदिर गुवाहाटी से 9 किलो मीटर की दूरी पर है।

पोबितारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी (Pobitora Wildlife Sanctuary):

यहाँ आप एक सींग वाले गेंडो की कई प्रजातियां देख सकते है। साथ ही साथ यहाँ आपको कई तरह की पक्षियों की प्रजातियां भी देखने के लिए मिल जाएगी। इसे पूर्व भारत का भरत पुर भी कहा जाता है। पोबितारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी गुवाहाटी 30  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप कामाख्या माता मंदिर जाए तो इन जगहों पर भी घूम सकते है।

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