माता वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना से लेकर वर्तमान तक माता वैष्णो देवी श्रद्धालुओं के बीच साल भर यात्रा के लिए आस्था देखी जा सकती है लेकिन क्या आपको पता है कि माता वैष्णो देवी की कथा क्या है और माता वैष्णो देवी का इतिहास क्या है? हमारे आर्टिकल में आपको यह सभी जानकारी प्राप्त हो जाएगी।
माता वैष्णो देवी का इतिहास- Vaishno devi ka itihas
माता वैष्णो देवी के इतिहास के अनुसार माता का जन्म दक्षिण भारत में एक रत्नाकर के घर में हुआ था लेकिन जन्म से पहले माता वैष्णो देवी के माता पिता निसंतान थे। माता वैष्णो देवी का बचपन का नाम त्रिकुटा था और इसीलिए बाद में जाकर माता वैष्णो देवी ने त्रिकुटा पर्वत पर ही तपस्या की। माता वैष्णो देवी ने मानव कल्याण के लिए भगवान विष्णु के वंश में जन्म लिया और इसी के साथ उनका नाम वैष्णवी पड़ा। मानव जाति के कल्याण के लिए माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती माता सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में एक सुंदर राजकुमारी के तौर पर जन्म लिया था। त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या करने के बाद माता वैष्णो देवी महालक्ष्मी महाकाली और माता सरस्वती के सूक्ष्म रूप में विलीन होकर त्रिकुटा पर्वत पर आसीन हो गई।
माता वैष्णो देवी की कथा-Mata Vaishno devi ki kahani
माता वैष्णो देवी की कथा के अनुसार करीब 700 साल पहले पंडित श्रीधर ने माता वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना की थी। पंडित श्रीधर एक ब्राह्मण थे। एक बार पंडित श्रीधर के सपने में माता रानी आई थी और उन्होंने पंडित श्रीधर को भंडारा कराने का आदेश दिया था लेकिन उस वक्त पंडित श्रीधर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी और वह सोच में पड़ गए थे कि भंडारा कैसे होगा लेकिन उन्होंने सब कुछ किस्मत पर छोड़ दिया और सो गए। अगले दिन सभी श्रीधर पंडित के घर प्रसाद लेने के लिए पहुंच गए और तब श्रीधर पंडित चिंतित होकर घर के अंदर बढ़ते हैं और देखते हैं कि उनकी कुटिया में एक छोटी बालिका खड़ी हुई है। इसके बाद उस छोटी बालिका ने पंडित श्रीधर के साथ मिलकर भंडारे का सारा खाना तैयार किया। तैयार किए गए प्रसाद को सभी ने ग्रहण किया और संतुष्ट हुए लेकिन वहां पर मौजूद भैरवनाथ प्रसाद ग्रहण करके खुश नहीं हुए। भैरवनाथ ने पंडित श्रीधर से अपने जानवरों के लिए भी खाने की मांग की लेकिन उस कन्या ने श्रीधर की ओर से और खाना देने से इनकार कर दिया जिस वजह से भैरवनाथ क्रोधित हो गए और यह अपमान सह नहीं सके जिसके बाद वह उस कन्या को पकड़ने के लिए भागते रहे। वह कन्या गायब हो गई जिसके बाद श्रीधर दुखी हो गए क्योंकि उनमें माता के दर्शन की लालसा थी। हालांकि 1 दिन फिर पंडित श्रीधर के सपने में माता वैष्णो देवी आई और उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा का रास्ता दिखाया। यह वही गुफा थी जहां से हजारों श्रद्धालु साल भर माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए यात्रा के दौरान इस दिव्य गुफा को पार करते हैं। तब से लेकर आज तक त्रिकुटा पर्वत पर माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
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